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आपूर्ति विभाग

द्वितीय विश्व युद्व के दौरान खाद्य एवं आवश्यक वस्तुओं की कमी सर्वत्र दृष्टिगोचर होने लगी थी। द्वितीय विश्व युद्व (1939-45 ई0) के दौरान खाद्य एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं के वितरण व प्रबंधन कार्य हेतु 1940 ई0 में तत्कालीन ब्रिटिश शासन द्वारा एक संस्था की स्थापना भारत में की गयी थी। युद्व के समय खाद्य एवं आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कमी और मूल्य वृद्वि की संभावना दिखने पर वर्ष 1941 में सरकार द्वारा ‘मूल्य नियंत्रक’ तथा ‘मूल्य नियंत्रण विभाग’ की स्थापना की गयी। वर्ष 1942 में कार्य में वृद्वि के फलस्वरूप विभाग को दो भागों में विभक्त किया गया। प्रथम- नागरिक आपूर्ति विभाग तथा द्वितीय-अर्थ एवं संख्या विभाग जिनके कार्य क्रमशः आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति एवं उस पर नियंत्रण बनाये रखना तथा मूल्य वृद्वि को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक वस्तुओं के खुदरा एवं थोक भाव निर्धारित करना था।

वर्ष 1943 में इसे पूर्ण रूप में विभाग का स्परूप दे दिया गया जिसका उद्वेश्य मुख्य आवश्यक खाद्यान्नों की खरीद, उनका भंडारण तथा राशन की दुकानों के माध्यम से उनके वितरण की देख-रेख करना तथा इससे संबंधित नीतियां बनाना था। इसके अतिरिक्त प्रशासनिक रूप से प्रांत को छः क्षेत्रों में विभाजित कर क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रकों की तैनाती की गयी तथा कुछ समय बाद क्षेत्र में कमी कर गोरखपुर, कानपुर, लखनऊ और मेरठ कुल चार क्षेत्र स्थापित किये गये । वर्ष 1943 में ही कार्य को सुचारू रूप से सम्पादित करने के उद्वेश्य से नागरिक आपूर्ति विभाग को पुनः दो भागों में विभाजित कियाः यथा-(क) नागरिक आपूति विभाग इसके अन्तर्गत आवश्यक वस्तुओं की खरीद का कार्य रखा गया। (ख) राशनिग विभाग इसके द्वारा आवश्यक वस्तुओं के वितरण का कार्य करना सुनिश्चित किया गया।

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